बंध मुठ्ठीयोंके वह हाथ गगन की ओर

 

बंध मुठ्ठीयोंके वह हाथ गगन की ओर

(अखिल गगै, धैर्य कोंवर, बितु सोनवाल, मानस कोंवर और हर एक क्रांति के राह के सेनानी को समर्पित)


मूल : कोकिल शइकीया

अनुवाद : Moon Moon Sarkar Saikia

 



बारिश से पहले आंधियों का सैलाब आएगा

 कमजोर पेड़ टुट कर गिरेंगे

 जिन्होंने नहीं सीखा जड़ों से बंधे रहना

 वह जमीन से अलग हो जाएंगे

 जिन पक्षियों ने बनाया था घरौंदा

 सुरीला गीत संजोया था धुप का

 उनमें से बहुतों का घरौंदा टुटेगा

 सांझ को अपने घरों में लौटते पक्षियां आंधियों में घिर जाएंगे

 कड़कती बिजलीओं में तहस नहस हो जाएंगे खेत खलिहान

 और भी बहुत कुछ

 और भी बहुत कुछ

 

बारिश से पहले आंधियों का चलना , बादल का गरजना, बिजली का गिरना लाज़िम हैं।

हारने की मत सोचना

आंधियों में गिरकर बिखर मत जाना

यह आंधियां उम्रभर रहेंगी

जो पेड़ जमाएं रखतें हैं पैर अपने तुफां में भी वही जिंदा रखतें हैं घर हमारे

तुमलोग पेड़ बनो

मिट्टी विश्वास है लोगों का, नया उजियारा हैं सपनों का

 

हर एक शोषित के लिए है कवि

कवि हैं हर सच्चे क्रांतिकारी के साथ

तुम्हारे जीत का गीत लिखने को इंतजार में हैं कलम की स्याही।

जगाओं जनता को जो जोश से जो थे सोये हुए

 

हमने कलम में पाला हैं आग को

किसानों ने हलों में पाला है आग को

राष्ट्र आतंक से त्रस्त धर्षिताओं ने अपने सीने में पाला हैं आग को

जेल में कैद क्रांतिकारीयों ने जेल के कोठरीयों  में पाला हैं आग को।

 

क्रांति के राह के सेनानियों, एक सच्चे क्रांतिकारी के आवाज़  को जितना दबाया जाएगा वह उतना ही दमदार बनेगा

बंद मुट्ठियां उतनी ही मजबूत बनेंगी जितना उन्हें तोड़ ने साजिश की जाएगी।

 

 

लड़ाई जारी रखो, निराश मत होना

हमें इन पूंजीवादीओं का झुका हुआ सर देखना है

काले से राजमुकुट का धस कर नीचे गिरना देखना है

चहिते गणतंत्र की जय-जयकार को सुनना है

मेरे देश की धरती में आराम ढुंढता हूं

गुलामी की पुरानी ज़ंजीरों को टुटते हुए देखना है

 

बारिश को गिरने दो

चीख चीख कर झंझोर के रख दो आकाश

फेंक के मारो पथ्थर ताकी गरज उठे पहाड़ भी

बारिश से पहले  आंधि का चलना, बादलों का गरजना, बिजली का गिरना आम बात है

रुकना मत

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